Saturday, 3 December 2011

6 दिसंबर 2011, बाबरी मस्जिद विध्वंस की सालगिरह पर साम्प्रदायिकता के खिलाफ काला दिवस मनाएं!

दिसंबर को ‘साम्प्रदायिकता के खिलाफ मार्च’ में शामिल हों ! मण्डी हाउस (१२ बजे से शुरू) से जंतर मंतर!

दोस्तो,

6 दिसंबर का दिन भारतीय लोकतंत्र के लिए काला दिन है. 1992 में इसी दिन साम्प्रदायिक ताकतों और भाजपा नेताओं द्वारा सरेआम बाबरी मस्जिद को तोड़ा गया था- जबकि पुलिस और कांग्रेस-शासित केन्द्र सरकार इस घटना की मूकदर्शक बनी रही थी. पूरे देश में अल्पसंख्यकों को साम्प्रदायिक हिंसा का निशाना बनाया गया था. आज, इस घटना के लगभग दो दशक बाद भी हम 6 दिसंबर को नहीं भूल सकते. आज तक न्याय नहीं मिला है. जांच के लिए बनाए गए लिब्रहान कमीशन ने एल.के. आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती समेत भाजपा के कई नेताओं को इस विध्वंस का दोषी ठहराया है. लेकिन उनके खिलाफ अब तक भी कोई कार्यवाही नहीं हुई और वो खुले घूम रहे हैं.
बाबरी मस्जिद विध्वंस भगवा ताकतों द्वारा एक संगठित राजनीतिक अभियान के तहत फैलाई गई साम्प्रदायिक नफरत का नतीजा था. आज भी वे कई रूपों में साम्प्रदायिक नफरत और हिंसा के संगठित राजनीतिक अभियान योजनाबध्‍द रूप से चल रहे हैं. 2002 में गुजरात में मोदी सरकार द्वारा प्रायोजित दंगे हुए जिनमें हजारों अल्पसंख्यकों को मारा गया. हाल ही में पुलिस के उच्चाधिकारियों ने ऐसे साक्ष्य पेश किए हैं जिनसे ये पता चलता है कि मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पुलिस को हिंसा का आदेश दिया था. अब मोदी सरकार इन पुलिस अधिकारियों को सच बोलने की सजा दे रही है.
मोदी सरकार को कई नकली एनकांउटर्स का भी दोषी पाया गया है जिनमें मासूम मुसलमान पुरुषों व स्त्रियों की पुलिस ने ठंडे दिमाग से हत्या करके उन पर ‘आतंकवादी’ होने का ठप्पा लगाया गया. हाल ही में गुजरात उच्च न्यायालय द्वारा नियुक्त की गई विशेष जांच टीम ने पाया कि 19 साल की लड़की, इशरत जहां, का एनकाउंटर वास्तव में पुलिस अफसरों द्वारा ठंडे दिमाग से की गई हत्या थी. शर्मनाक तरीके से केन्द्र की कांग्रेस सरकार के गृह मंत्री भी इशरत जहां को न्याय देने की जगह उसे आतंकवादी करार देते रहे. हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने भी गुजरात सरकार को सोहराबुद्दीन शेख और उसकी पत्नी शौकत बी के नकली एनकाउंटर में पुलिस अफसरों की भूमिका पर पर्दा डालने की कोशिश का दोषी पाया. मोदी के हाथ खून से रंगे हुए हैं लेकिन भाजपा उसे राष्ट्रीय हीरो के तौर पर स्थापित करने की कोशिश कर रही है.
इस बीच बम धमाकों और आतंकवादी हमलों में संघ परिवार की भूमिका का भी पर्दाफाश हो रहा है. स्वामी असीमानन्द की स्वीकारोक्ति ने ये साबित कर दिया है कि मालेगांव बम धमाके भगवा ताकतों द्वारा अंजाम दिए गए थे. ि‍फर भी उस आतंकवादी कार्यवाही के लिए नौ मासूम मुसलमान युवकों को जेल में टॉर्चर किया गया. अभी हाल ही में जांच एजेंसियों द्वारा ये स्वीकार करने के बाद कि उनके पास इनके खिलाफ कोई सबूत नहीं है, इन्हें जमानत मिल पाई.
मासूम मुस्लिम नौजवानों के खिलाफ झूठे आतंकवादी मामले बना देना बहुत ही आम बात है. दिल्ली में भी कांग्रेस सरकार ने बाटला हाउस ‘एनकाउंटर’ की न्यायिक जांच से इन्कार कर दिया है - हालांकि इस बात के कई संकेत हैं कि ये एक नकली एनकाउंटर था. मालेगांव के अनुभव से हम सबको ये सीखना चाहिए कि आतंकी संदिग्धों के बारे में पुलिसिया संस्करणों से हमें बचना होगा. टॉर्चर से कभी सच्चाई का पता नहीं लगाया जा सकता- अगर हम चाहते हैं कि बम धमाकों के दोषियों को सजा मिले तो ये सुनिश्चित करना होगा कि जांच निष्पक्ष, साक्ष्यों के आधार पर और समाज में अल्पसंख्यकों के खिलाफ व्याप्त हर तरह के साम्प्रदायिक पूर्वाग्रहों से पूरी तरह मुक्त हो.
अपने लोकतंत्र के लिए खतरा बनी हुई इन साम्प्रदायिक ताकतों से कैसे संघर्ष किया जाए? इतिहास ने ये दिखाया है कि धर्मनिरपेक्षता के मामले में कांग्रेस पर भरोसा नहीं किया जा सकता. कांग्रेस ने धर्मनिरपेक्षता को बार-बार धोखा दिया है, यहां तक कि आज भी, ये बाबरी मस्जिद में आडवाणी की भूमिका के लिए उसके खिलाफ कार्यवाही करने में, या दंगों और नकली एनकाउंटरों में मोदी की भूमिका के लिए उसके खिलाफ, या आतंकी कार्यवाहियों के दोषी संघ परिवार के खिलाफ कोई भी कार्यवाही करने में असफल रही है. साम्प्रदायिक ताकतों का प्रतिरोध करने के लिए आम आदमी को आगे आकर मोर्चा संभालना होगा, साम्प्रदायिक राजनीति को नकार कर धर्मनिरपेक्षता और न्याय की मांग करनी होगी.
आइए, 6 दिसंबर 2011 को, हम साम्प्रदायिक हिंसा, नकली एनकाउंटरों और अल्पसंख्यकों को निशाना बनाने के खिलाफ मार्च करें. न्याय और धर्मनिरपेक्षता के लिए अपनी आवाज़ बुलंद करें. अपने संकल्प को दोहराने के लिए आगामी 6 दिसंबर को 12 बजे ‘साम्प्रदायिकता के खिलाफ मार्च’ में शामिल होने के लिए मण्डी हाउस पहुंचें।

निवेदकः
भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माले), दिल्ली राज्य कमेटी